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श्री जिनसिंहसूरि गीतानि (४०१ ) ललित वयराग गुरु ललित सोभाग गुरु,
ललित पराग गुरु ललित व्रती री ॥ ल०॥२॥ ललित खरतर गुरु ललित सुरतरु गुरु,
ललित गणधर गुरु ललित रती री । समयसुन्दर प्रभु जिनसिंहसरि कु __साहि अकबर मानइ छत्रपती री ॥ल०॥३॥
(२९)
राग-धन्यासिरी बलिहारी गुरु वदन चंद बलिहारी । वचन पीयूष पान कुंआए, नयन चकोर अनुसारी री।श गु.। भविक लोक लोचन आणंदण, दुरित तिमिर भरवारी। अकलंक सकल कला संपूरण, सौम्य कांति मनुहारीरी।।गु.। . पातिसाहि अकबर प्रतिबोधक, युगप्रधान पटधारी। समयसुंदर कहइ श्रीजिनसिंघसूरि,सब जन कुंसुखकारी री।३।गु.।
राग-पंचम आवउ सुगुण साहेलड़ी, मिलि वेलड़ी रे;
गायउ जिनसिंघसूरि मोहन वेलड़ी ।। श्रा०। श्रवण सुधारस रेलड़ी, गुड़ भेलड़ी रे;
मीठी सहगुरु वाणि जाणे सेलड़ी ।२।०।
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