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________________ श्री जिनसिंहसूरि गीतानि ( ३६६ ) देखत हरखित होत हीया री ॥१॥ श्र० ॥ कठिन विहार कीयउ कासमीरइ, साहि अकबर बहु मान दीया री । श्रीपुर नगर अमारि पालण तह, सब जग मई सोभाग लीया री || २ || श्र० ॥ गुहिर गंभीर सर मधुर आलापति, देसया सुगत मानु अमृत पीया री। समयसुन्दर प्रभु सुगुरु वांदण तई, इहु मइ मानव भव सफल कीया री || ३ || श्राना (२५) राग-कल्याण श्री जिन सिंघसूरिंद जयउ री | श्री० | 1 जुगप्रधान जिण चंद मुणीसर, पाटि प्रभाकर ज्युं उदयउ री । १ । श्री । अकबर साहि हजूर हरख भरि, आचारिज पद जासु दयउ री। मोहन वेलि भविक मन मोहन, दरसण तइ दुख दूरि गयउ री | २|श्री . | चोपडां वंश चांपसी नंदरण, वंदण कु मेरउ मन उमयउ री । समयसुंदर कहइ श्रीगुरु आए, श्रीसंघ कुं आणंद भयउ री | ३ | श्री. Jain Educationa International (२६) राग-केदारउ जिनसिंघसूर की बलिहारि । बूव्य पातिसाहि अकबर, दया धरम दिखारि । १ । जि० | For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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