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________________ ( ३६६) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि जउ तूं रे वधामणि आणइ सुगुरु केरी । तउ हूं सोवन चांच मंढावू सुयटा तेरीरी। वीर स्व०॥२॥ सुणि सखि मारग मांहि मलपंता आवइ । श्रीय जिनसिंघसरि महा प्रभावइ रे ॥वीर सू०॥३॥ सुगुरु आगम सुणि आणंद पाया। सुरनर किनर नामीरी वधाया रे ॥ वीर सू०॥४॥ आचारिज आव्या मन कामना फली। समयसुन्दर गुण गावइ मन नी रली रे।। वीर सू०॥५॥ मारग जोवंतां गुरु जी तुम्हे भलइ आए रे। गु० । मोहन मूरति पेखी आणंद पाए ॥ हियरा ही सतगुरु नी देखी मुख तोरा रे । मेघ के आगमि जइसइ माचत मोरा ॥१॥ मा०॥ नयण तुम्हारे गुरु जी मोहण गारे । गु० । छोरण न जाते हम कुं बहुत प्यारे । तुम्हारे चरण गुरु जी मेरा मन लीणा । गु० । वचन सणंता चित अंतर भीणा ॥१॥मा०॥ किंहा कुमुदिनी किहाँ गगनि चंदारे । गु० । दर थी करत तउ भी परम आणंदा । जे नर जोके चित मइ ते दूर थइ नेरे जी । गु० । अहनिसि लेउं गुरु जी भामणा तेरे ॥३॥मा०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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