________________
श्रीजिनसिंहसूरि गीतानि
( ३६५ )
अणीराय उंबराउ पातिसाह का निजी की,
तुम सुं हइ इकलास प्रीति ओ पालइ नीकी । पातिसाह का पासि आयां तुम कुं फायदा,
खुदा करइ तउ खूब किसा वधारू काइदा पूजजी.।
(१८) श्री आचारिज कइयइ आवस्यइ, जोसी जोय विचारो रे। सुंदर वात कहइ सोहामणी, लगन तणइ अनुसारो रे ।शश्री.। अह निसि जोऊ रे सहगुरु वाटडी,मोमनिवांदिवाखांति रे। धर्म राग भेघउ चिर भीतरह, पडीय पटोलइ भांति रे।।श्री.। सोभागी गुरु सहु नइ वालहा, मुनिवर मोहण वेलि रे । विनयवंत श्रावक सहु सांभलइ, वचन अमीरस सेलि रे।३।श्री.। गुरु उपरि जे राचइ नहिं, ते माणस तिरजंचो रे। परवाली मोती नु पारखु, चतुर लहइ परपंचो रे ।४।श्री.। श्रीखरतर गच्छ केरउ रानियउ, जुगप्रधान पटधारो रे । श्रीजिनसिंघसूरोसर वांदतां, समयसुन्दर जयकारो रे ।।श्री.।
राग-रामगिरि सूबटा सोभागी, कहि किहां सगुरु दीठा। साकर दूध सेती, मुख करावुमीठा रे ॥वीर स्व०॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org