________________
श्री जिन सिंहसूरि सपादाष्टक
( ३६३ )
विचित्र तंबू वणायउ, उपाश्रउ नीकउ वणायउ;
इंद्र भी देखण आयउ, सुन्दर सोभतियां। नांदि कउ उच्छव कीनउ, कर्मचंद जस लीनउ;
सवा कोडि दान दीनउ, सुगुरु गावतियां । समयसुन्दर कहइ, श्रीसंघ गहगहइ;
दान मान सब लहइ, वाजत नोवतियां ॥७॥ एजु चोपड़ा वंश दिणिंद, चांपसीह साह नंद;
. अदभुद रूप इंद, मुख जइसो चंद री। सुविहित खरतर, गच्छ भार धुरंधर
सेवतां ही सुरतरु, सुख केरउ कंद री ॥ जिणचंद सूरि सीस, छाजत गुण छत्तीस
पूरवह मन जगीस, भवियण वृन्द री । समयसुन्दर पाय, प्रणमी सुजस गाय,
जिनसिंह सरिराय, जगि चिर नंद री ॥८॥ इति श्रीजिनसिंहसूरीणां सपादाष्टकं सम्पूर्णम् ।
(१७) बे मेवरे काहे री सेवरे, अरे कहां जात हो उतावरे, टुकरहोनइ खरे।बे। हम जाते बीकानेर साहि जहांगीर के भेजे,
हुकम हुया फरमाण जाइ मानसिंघ कु देजे । सिद्ध साधक हउ तुम्ह चाह मिलणे की हम कु,
वेगि आयउ हम पास लाभ देऊंगा तुम कु।। बे मेवरे।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org