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________________ ( ३६२) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि जीवदया धरमसार, बूझत सदा विचारः भरत चक्री उदार, कइसें लीनउ जोग री। मानसिंह मान्यउ साहि, जश भय जग माहि; समयसुन्दर तह, सुखे कापूपींग री ॥४॥ एजु अकबर जहांगीर, साई नाकासमीर; सुगुरु साहस धीर, दृढ करि हइया री । परत बरफ पूर, मारग विषम दूर; __ चरत डरत सूर, कहा कीजइ दइया री ॥ श्रीपुरनगर आई, अमारि गुरु पलाई __ मछरी सबइ छोराइ, नीकउ भयउ भइया री। समयसुन्दर तस, गावत सुगुरु जस; . अकबर कीनउ बस, अइसे गुरु अइया री॥॥ एजु जिनचंदररिज्ञानी, गच्छ की उन्नति जानी; साहि कउ हुकम मानी, साहि के हजूरि री । लाभपुर आए जोम, सिंह सम जान्यउ ताम; पातिसाहि दीनउ नाम, जिनसिंघसरि जी॥ पाठक वाचक दोय, सब मिल पंच होय; जुगह प्रधान जोय थापे गुण पूर री । आचारिज बड़ भागी, सुन्दर कहइ सोभागी; 'पुण्य दिसा जसु जागी, प्रबल पडूर री ॥६॥ एजु मसंजर मुखमल, कसबी की झ(ल)मल; सूप रूप निरमल, कथीपे की भतियां । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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