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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
जीवदया धरमसार, बूझत सदा विचारः
भरत चक्री उदार, कइसें लीनउ जोग री। मानसिंह मान्यउ साहि, जश भय जग माहि;
समयसुन्दर तह, सुखे कापूपींग री ॥४॥ एजु अकबर जहांगीर, साई नाकासमीर;
सुगुरु साहस धीर, दृढ करि हइया री । परत बरफ पूर, मारग विषम दूर;
__ चरत डरत सूर, कहा कीजइ दइया री ॥ श्रीपुरनगर आई, अमारि गुरु पलाई
__ मछरी सबइ छोराइ, नीकउ भयउ भइया री। समयसुन्दर तस, गावत सुगुरु जस;
. अकबर कीनउ बस, अइसे गुरु अइया री॥॥ एजु जिनचंदररिज्ञानी, गच्छ की उन्नति जानी;
साहि कउ हुकम मानी, साहि के हजूरि री । लाभपुर आए जोम, सिंह सम जान्यउ ताम;
पातिसाहि दीनउ नाम, जिनसिंघसरि जी॥ पाठक वाचक दोय, सब मिल पंच होय;
जुगह प्रधान जोय थापे गुण पूर री । आचारिज बड़ भागी, सुन्दर कहइ सोभागी;
'पुण्य दिसा जसु जागी, प्रबल पडूर री ॥६॥ एजु मसंजर मुखमल, कसबी की झ(ल)मल;
सूप रूप निरमल, कथीपे की भतियां ।
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