________________
श्री जिनसिंहसूरि सपादाष्टक (११) समयसुन्दर तब, हरखित होत सब
अधिक आणंद अब, उलसति छतियां ॥१॥ एजु प्रणम्यां श्री शांतिनाथ, गुरु सिर धरचउ हाथ;
समयसुंदर साथ, चाले · नीकी वरियां। अनुक्रमि चलि आए, सीरोही मई सुख पाये;
सुलताण मनि भाए, पेखत अंखरियां ॥ जालोर मेदनीतट, पइसारउ कियउ प्रगट,
डिंडवाणइ जीते भट, जयसिरि वरियां । रिणी ते सरसपुर, आवत पीरोजपुर,
लंघत नदी कसूर, मार्नु जइसी दरियां ॥२॥ एजु आवत जु शोभ लीनी, लाहोर वधाई दीनी;
मंत्री कुमालुम कीनी, कहह ऐसो पंथिया । मानसिंघ गुरु आए, पातिसाहि कुसुणाए;
वाजिब गृधु वजाए, दान दियइ दुथियां ॥ समयसुन्दर भायउ, पइसारउ नीकउ वणायउ;
श्रीसंघ साम्हउ आयो, सज करि हथियां । गावत मधुर सर, रूपइ मानु अपछर
सुन्दर सूहब करइ, गुरु आगइ सथियां ।।३।। एजु तबही श्री जी कुँमिले, पछया री गुरु हउभाले
दुरि देसि आए चले, वखत संजोग री। हरखित होत हीया, अत्यंत आदर दीया;
दउढी का हुकम कीया, जानइ सब लोग री॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org