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श्री जिनचन्द्र सूरि गीतम्
(३७३ )
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सुललित वाणि वखाण सुगावति,
__ श्रवति सुधा मकरंद रे। भविक भवोदधि तारण वेरि,
जन मन कुमुदनी चंद रे॥पू० ॥२॥ रीहड़ वंश सरोज दिवाकर,
साह श्रीवंत कउ नंद रे। समयसुंदर कहइ तूं चिर प्रतपे,
श्री जिणचंद मुणिंद रे। पू० ॥३॥
श्री जिनचंद्र सूरि छंद सुगुरु जिणचंद सौभाग सखरो लियो,
चिहूं दिसे चंद नामो सवायो। जैन शासन जिके डोलतउ राखियो,
साखियो जगत सगलइ कहायो॥१॥ एक दिन पोतिसाह आगरइ कोपियो,
___ दर्शनी एक आचार चूकउ । शहर थी दरि काढो सबइ सेवड़ा,
___ मेवड़ां हाथ फरमाण मूक्यउ ॥२॥ आगरइ सहरि नागोर अरु मेड़तइ,
महिम लाहोर गुजरात मांहइ ।
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