________________
( ३७४ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
देस दंदोल सबलउ पड़चउ तिहां किणे,
तुरत ना पंथिया तुंब वाहई ।।३॥ दरसनी केइ पर दीप मई चढि गया,
केइ नासी गया कच्छ देसे । केइ लाहोर. केइ रहया भूहि मां,
दरसनी केइ पाताल पैसे ॥४॥ तिण समइ युग प्रधान जगि राजियो,
श्री जिनचंद तेजे सवायो। . पूज अणगार पाटण थकी पांगुर या,
आगरइ पातिसाह पासि आयो ॥ ५॥ तुरत गुरु राय नइ पातिसाह तेड़िया,
देखि दीदार अति मान दीधा । अजब की छाप फुरमाण करि अखिया,
केडला गुनह सहु माफ कीधा ॥६॥ जैन शासन तणी टेक राखो करी,
ताहरइ आज कोई न तोलइ।.. खरतर गच्छ नई सोम चाढी खरी,
समयसुंदर विरुद साच बोलइ ॥ ७ ।। __ श्री जिनचंद्र सूरि आलिजा गोतम् भासू मास वलि आवियउ पूजजी,
अायो दीपाली पर्व ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org