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________________ ( ३७२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जाल सदगुरु वाणि सुणी साहि अकबर, परमानंद मनी पाए। हफतह रोज अमारिपालन कुं, लिखि फुरमाण पठाए ।म.॥२॥ श्री खरतर गच्छ उन्नति कीनी, दुरजन दूरि पुलाए । समयसुंदर कहइ श्रीजिनचंद सरि, सब जन के मन भाए ।।म.॥३॥ श्री जिनचन्द्रमरि गीतम् राग-आसावरी. सुगुरु चिर प्रतपे तू कोड़ि वरीस । खंभायत बंदर माछलड़ी, सब मिलि देत आसीस ।।सु.॥१॥ धन धन श्री खरतर गच्छ नायक, अमृत वाणि वरीस । साहि अकबर हमकुं राखण कुं, जासु करी बकसीस ।।सु.॥१॥ लिखि फरमाण पठावत सबही, धन कर्मचंद्र मंत्रीश । समयसुंदर प्रभु परम कृपा करि, पूरउ मनहि जगीश ॥सु.॥३॥ श्री जिनचंद मूरि गीतम् राग-आसावरी पत्य जी तुम चरणे मेरउ मन लीणउ, ज्यू मधुकर अरविंद । मोहन वेलि सबइ मन मोहिउ, पेखत परमाणंद रे॥ पू०॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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