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गुर्वावली गीतम्
( ३४६ )
भद्रसूरि जियचंद समुद्रसूरि, हंसरि चोपड़ा कुलचंद | जिन माणिकसूरि श्री जिनचंद्रसूरि, श्रीजिनसिंघसूरि चिर नंद ||२|| एजु श्रीजिनसिंहरि चिर नंद,
श्री गुरु हो खरतर नायक अविचल पाट ||
सुधरम सामि परंपरा चंद कुल, वयर सामि नी साखा जाण । खरतर गच्छ भट्टारक गिरुया, परगच्छि ए पण क्रिया प्रमाणि । पाखी आठमि नी चउमासह, गुरावलि गीत सुखो वखाणि । श्रीसंघ नइ मंगलीक सदाइ, समयसुन्दर बोलति मुख वाणि ॥३॥
दादा श्री जिनदत्तसूरि गतिम
दादाजी वोनी धारो | दा० ।
बड़ली नगर श्री शांति प्रासादे, जागतउ पीठ तुम्हारो ॥ दा. ॥ १ ॥ तूं साहिब हूं सेवक तोरो, बंछित पूर हमारो । प्रारथिर्या पहिइ नहीं उत्तम, ए तुमे बात विचारो || दा. ॥ २ ॥ सेवक सुखियां साहिब सोभा, ते भी भक्त संभारो । समयसुंदर कहइ भगति जुगति करि, जिनदत्तसूरि जुहारो ॥दा. ॥३॥
दादा श्रीजिन कुशल सूरिगुरोरष्टकम्
नतनरेश्वर मौलिमणिप्रभा- प्रवर केशर चर्चितपत्कजम्। मरुषुमुख्यगडालयमण्डनं, कुशलसूरिगुरुं प्रयत स्तवे |१|
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