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________________ ( ३४८) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि श्रीजिनपति सूरीसर राय, सरि जिणेसर प्रणमुपाय । जिन प्रबोध गुरु समरूं सदा, श्रीजिनचंद्र मुनीसर मुदा ॥४॥ कुशल करण श्री कुशल मुणिंद, श्रीजिनपदमसरि सखकंद। लब्धिवंत श्री लब्धि सूरीश, श्री जिनचंद नमूनिशदीस ॥॥ सूरि जिनोदय उदयउ भाण,श्री जिनराज नमूसुविहाण। श्री जिनभद्रसूरीसर भलउ, श्री जिनचंद्र सकल गुण निलउ ।६। श्री जिनसमुद्रसरि गच्छपती, श्री जिनहंसमरिसर यती। जिनमाणकसरि पाटे थयर, श्रीजिनचंद सरीसर जयउ॥७॥ ए चौवीसे खरतर पाट, जे समरइ नर नारी थाट । ते पामइ मन वंछित कोड़, समयसुंदर पभणइ कर जोड़ि ॥८॥ इति श्रीखरतर २४ गुरु पट्टावली समाप्तालिखिताच पं० समयसुन्दरेण । (जयचंदजी भंडार गु० नं० २५) गुर्वावली गीतम् राग-नट्टनारायण जाति कड़खा उद्योतन बर्द्धमान जिनेसर, जिनचंदररि अभयदेवसरि । जिनवल्लभमरि जिनदत्त जिनचंद,श्री जिनपतिसरि गुण भरपूरि ॥१॥ ए जु श्रीजिनपतिसूरि गुण भरपूर नइ, श्रीगुरुहो खरतर नायक अविचल पाट । जिनेसरसूरि प्रबोधसरि जिनचंदसरि, कुशलसरि पदममूरिंद। लब्धिमूरि जिनचंद जिनोदय, श्री जिनराजसरि सुखकंद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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