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श्री मृगावती सती गीतम्
( ३३७ )
मिच्छामि दुक्कड़ दइ मन सुद्ध,
__ मूकी निज अभिमान । पोतानउ दूषण परकास्यउ,
पाम्यउ केवल ज्ञान ।। मृ०॥३॥ चंदन बाला केवल पाम्यउ,
करती पश्चाताप । समयसुंदर कहइ बे मुगति पहुँती,
नाम लिया जायइ पाप ॥ मृ०॥४॥
श्री चेलणा सती गतिम् वीर वादी वलतां थकां जी,
चेलणा दीठउ रे निग्रंथ । वन मांहि काउसग रह्यउ जी,
साधतउ मुगति नो पंथ ॥१॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी,
सतिय सिरोमणि जाण । चेडा नी साते सुता जी,
श्रेणिक सील प्रमाण ॥२॥वी०॥ सीत ठंठार सबलउ पड़इ जी,
चेलणा प्रीतम साथि ।
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