________________
श्रो मरुदेवी माता गीतम् ( ३३५ ) इम मुझ दुख करंतड़ा,
रोवंता रात नइ दीसरे। नयणे अंध पडल वल्या,
मोहनी विषम गति दीस रे॥ म. ॥ ७॥ तिण समइ आवि वधावणी,
ऋषभ नइ केवल नाण रे। सांभलि भरत .. नरेसरू,
वांदिवा जायइ जगभाण रे ॥ म. ॥ ८॥ मरुदेवी गज चड्या मारगइ,
सांभल्या वाजिन सूर रे। देव दुंदुभि प्रभु देसना,
झटकि पडल गया दूर रे ॥ म. ॥६॥ प्रभु तणी रिधि देखी करी,
चिंतवइ मरुदेवी मात रे। हूंतउ आवडउ दुख करू,
रिषभ नइ मनि नहीं बात रे॥म. ॥१०॥ एतला दिवस मई मुझ भणी,
नवि दियउ एक संदेश रे। कागल मात्र नवि मोकल्यउ,
नविकर यउ राग नउ लेश रे।। म.॥ ११॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org