________________
(३३४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि तूं थयउ सुख तणउ लोभियउ,
न करह म्हारा रिषभ नी सार रे ।। म. ॥१॥ सुरनर कोड़ि सं परिवर यउ,
हीडतउ वनिता मझार रे। आज भमइ वन एकलउ,
ऋषभजी जगत आधार रे ॥म.॥२॥ राज लीला सुख भोगियउ,
म्हारउ रिषभ सुकुमाल रे । आज सहइ ते परिसहा,
भूख तृषा नित काल रे ॥ म. ॥ ३॥ हस्ति ऊपर चड्यउ हीडतउ, .
आगलि जय जय कार रे। आज हीडइ रे अल वाहणउ,
चिहुं दिसि भमर गुंजार रे । म.॥४॥ सेज तलाइ में पउढतउ,
वर पट कूल विछाइ रे । आज तउ भूमि संथारड़उ,
बइठड़ां रयणी विहाइ रे ॥म. ॥५॥ मस्तकि छत्र धरावतउ,
चामर वीजता सार रे। आज तउ मस्तकइ रवि तपइ,
डांस मसक भणकर रे ॥म. ॥ ६॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org