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( ३२४ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
वेश्या नइ राजा नइ वसि पड़ी ,
मुहकम दीधी मारि । गहिली काली थइ गलिए भमइ,
पणि राख्यउ सील नारी ॥३॥०॥ भरुयच्छ वासी जिणदास श्रावकइ,
पीहर मकी आणि । धरम सुणी नइ संजम आदर चउ,
कठिन क्रिया गुण खाणि ॥४॥न०॥ अवधी न्यान साधवी नइ ऊपनँ,
पहुँती सासू पासि । रिषिदत्ता दीधउ उपासरउ,
द्यइ उपदेस उलासी ॥शान०॥ स्वर लक्षण नउ भेद सुणावियउ,
प्रियउ करइ पश्चाताप । निरपराध मकी मई नरमदा,
मइ कीधउ महापाप ॥६॥न०॥ दुक्ख म करि तुं देवाणुप्पिया,
तुझ दूषण नहीं तेह । तेहनइ करमे ते दुखिणी थई,
तेहू नरमद एह ॥७न०॥
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