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श्री अंजना सुन्दरी सती गीनम्
(३२३)
वन माहे हनुमंत बेटउ जायउ,
मामउ मिल्यउ घर तेडि सिधोयउ॥अं० ॥७॥ पवनंजय आयउ अपणइ घरि,
दुख करि अंजना नउ बहु परि ।। अं० ॥८॥ काष्ट भक्षण करिवा ते लागउ,
मित्र मेली अंजणा दुख भागउ ।। अं० ॥६॥ सुख भोगवि संजम पणि लीधउ,
___ अंजगा सुंदरि वंछित सीधउ ।। अं०।१०॥ अंजणा संदरि सती रे शिरोमणि,
गुण गायउ श्री समयसुन्दर गणि ॥ अं११॥ श्री नरमदा सुंदरी सती गीतम् ढाल-साधजी न जाए रे पर घर एकलउ । नरमदा सुदरी सतिय सिरोमणि,
चाली समुद्र मझारि । गीत गायन ना अंग लक्षण कह्या,
भरम पड़ यउ भरतारि ॥१॥न०॥ राक्षस दोपड़ मकी एकली,
कीधा विरह विलाप । बधर कूलइ काउ ले गयउ,
प्रगट्या तिहां वलि पाप ॥शन०॥
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