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श्री शालिभद्र गीतम् ..
( ३०७ )
रतन कंबल अाव्यां घणां रे, पणि श्रेणिक न लेवाय । सालिभद्र नी अंतेउरी रे, लूही नाख्यां पाय ।मु०॥३॥ श्रेणिक श्राव्यउ आंगणइ रे, पुत्र सुरणउ सुविचार । श्रेणिक क्रियाणु मेलवी रे, मात जी मेल्हउ वखारि ॥१०॥ ४॥ श्रेणिक ठाकुर आपणउ रे, जेहनी वसियइ छत्र छांय । चमक यउ सालिभद्र चिंतषइ रे,मुझ माथइ पखि राय ।। मु०॥५॥ तण जिम रमणी परिहरी रे, जाण्यउ अथिर संसार । महावीर पासि मुनीसरू रे, लीधउ संजम भार ।मु०॥६॥ तुम नई मां पडिलाभयइ रे, इम बोलइ महावीर । घरि आव्यउ नवि ओलख्यो रे,तप करी मोख्यु सरीर ।मु०॥७॥ पडिलाभ्यउ गोवालणी रे, पूरव भवनी माय । वीर वचन साचां थया रे, धन धन श्री जिनराय ॥ मु०॥८॥ वैभार परबत ऊपरी रे, ले अणसण शुभ ध्यान । मास संलेखण पामियु रे, सरवारथ सिद्धि विमान । मु०॥६॥ सालिभद्र ना गुण गावतां रे, सीझइ वंछित काम । समयसुंदर कहइ माहरउ रे, त्रिकरण शुद्ध प्रणाम । मु०॥१०॥
इति श्री शालिभद्र गीतम् ।।१०।।
श्री श्रेणिक राय गीतम् प्रभु नरक पडतउ राखियई, तउ तँ पर उपगारी रे । श्रेणिक राय वदति वीर तेरउ, हूं तउ खिजमति कारी रे ।प्र.।१।
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