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________________ ( ३०६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि मारग मांहि मिला महिारा तिण गोरस विहरायउ रे ॥सा. ॥३॥ बेकर जोड़ी सालिभद्र बोला, प्रश्न करू स्वामी तुझ नइ रे । विरहण बात तो दूरो रही पणि, मां ओलख्यउ नहीं मुझनइ रे ।। सा. ॥४॥ पूरब भव माता पडिलाभ्यउ, भगवंत संदेह भाजउ रे । समयसुंदर कहइ धन धन सालिभद्र, वीर चरणे जाइ लागउ रे ॥ सा. ॥शा इति श्री सालिभद्र गीतम् ।। ४७ ॥ श्री शालिभद्र गीतम् ढाल- कपूर हुयइ अति ऊजलुरे, वली अनोपम गंध । ए गीतनी राजगृही नउ विवहारियउ रे, गोभद्र तणउ रे मल्हार । भद्रा माता कूयरु रे, सालिभद्र गुण भण्डार ॥१॥ मुनीसर धन सालिभद्र अवतार, जिण लीघउ संजम भार। मुनीसर धन• जिण पाम्यउ भव नउ पार ।मु० ध०॥ोंकणी!! वत्रीस अंतेउरि परिवर-घउ रे, भोगवा लील विलास । मन वंछित सुख पूरवइ रे, गोभद्र सगली आस । मु०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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