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________________ ( ३०८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि कालकसरियउ महिष न मारइ, कपिला दान दिराय रे। वीर कहइ सुण श्रोणिक राया, तउ तूं नरक न जाय रे ।प्र.।२। कालकमरियंउ किम ही न रहइ,कपिला भगति न आई रे। कीधउ हो करम न छूटइ कोइ, हिंसा दुरगति जाइ रे ।प्र.३। दुख न करि महावीर कहइ तोरी, प्रकट हुसी पुण्याई रे। पदमनाभ तीर्थकर होस्यइ, समयसुंदर गुण गाई रे । प्र.।४। -* श्री स्थूलिभद्र गीतम् मनड़उ ते मोह्यउ मुनिवर माहरू रे, कहइ इम कोश्या ते नारि रे। आठे ते पहुर उपांपलउ रे, चट पट चित्त मझार रे । मन०१। ० पांजरडउं ते भूलउ भमइ रे, . जीव तमारे पास रे । तमस्यं बोल्यई विण माहरइ रे, पनरह दिन छमासि रे। मन०१२। पर दुक्ख जाणइ नहीं पापिया रे, दुसमण घलइ विचइ घात रे । जीव लागउ जेहनउ जेहस्युं रे, किम सरइ कीधां विण वात रे । म०३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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