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( ३०२)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
धनो कहइ सुण गहेलड़ी जी, शालिभद्र पूरउ गमार। जोमन आशा छांडिवाजी, तो विलंब न कीजइ लगार। सो.॥१२॥ कर जोड़ी कहई कामिनी जी, बंधव सम नहीं कोइ । कहिता बात सोहिली जी, करतां दोहिली होय ॥ सो. ॥१३॥ जारे तो तई इम का जी, तो मई छोड़ि रे आठ । पिउड़ा मई हंसतां का जी, कुणसं करस्युं बात ।। सो. ॥१४॥ इण वचने धनउ नीसर यो जी, जाणे पंचानन सींह। साला नइ जइ साद कर यउ जी, गहेला उठ अबीह ॥ सो. ॥१॥ काल आहेड़ी नित भमइ जी, पूठ म जोइस जाय । नारी बंधन दोरड़ी जी, धव धव छंडइ निरास ॥ सो. ॥१६॥ जिम धीवर तिम माछलो जी, धीवरे नांख्यो जाल । पुरुष पड़ी जिम माछलो जी, तिम अचिंत्यो काल ॥ सो. ॥१७॥ जोवन भर बिहुँ नीसर चा जी, पहुँता वीर जी पास । दीक्षा लीधी स्वड़ा जी, पालइ मन उल्हास ॥सो. । १८॥ मासखमण नइ पारणइ जी, पूछइ श्री जिनराज । अमनइ शुद्ध गोचरी जी, लाभ देस्यइ कुण आज । सो. ॥१६॥ माता हाथइ पारणउ जी, थास्यइ तुम्ह नइ आहार । वीर वचन निश्चय करी जी, आव्या नगरी मझार ॥ सो. ॥२०॥ घराव्या नहीं ओलख्या जी, फिर आव्या ऋषि राय।। मारग मिलतां महियारडीजी, सामी मिली तिण ठाय॥ सो. ॥२१॥ मुनि देखी मन उल्लसइ जी, विकशित थइ तनु देह । मस्तक गोरस सूझतंउ जी, पडिलाभ्यउ धरि नेह ॥सो. ॥२२॥
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