SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ धन्ना शालिभद्र सझाय ॥ ॥२॥ ॥३॥ सोभागी शालिभद्र भोगी रह्यो । करणी || बत्तीस लक्षण गुण भरचो जी, परण्यउ बत्तीस नार । मानव नइ भव देवना जी, सुख विलसह संसार || सो. गोभद्र सेठ तिहां पूरवइ जी, नित नित नवला रे भोग । करइ सुभद्रा उवारणा जी, सेव करइ बहु लोग ॥ सो. इक दिन श्रेणिक राजियउ जी जोवा श्राव्यउ रूप । देखी अंग सुकोमला जी, हर्ष थयउ बहु भूप ॥ सो. ॥४॥ वच्छ वैरागी चिन्तवह जी, मुझ सिर श्रेणिक राय । पूर पुण्य महं नवि कर या जी, तप आदरस्युं माय ॥ सो. ॥५॥ इ अवसर श्री जिनवरू जी, आव्या नगर उद्यान । शालिभद्र मन ऊजभ्यउ जी, वांद या वीर जी ने ताम ॥ सो. ॥६॥ वीर तणी वाणी सुखी जी. बृठो मेह अकाल । एकाकी दिन परिहरड़ जी, जिम जल छंडइ पाल ॥ सो. ॥७॥ माता देखी टलवलइ जी, माछलड़ी विनंं नीर । नारी सगली पाय पड़ी जी, मत छंडो साहस धीर ॥ सो. ॥८॥ बहुर सगली वीनवइ जी, सांभलि जिणसुं विचार । सर छंडी पाल चढ्यउ जी, हंसलउ उडण हार ॥ सो. ॥६॥ अवसर तिहां न्हावतां जी, धन्ना सिर आंसू पड़त । कउण दुख तुझ सांभर चउ जी, ऊंचउ जोइ नह कहंत ॥ सो. ॥१० चंद्रमुखी मृग लोचनी जी, बोलावी भरतार | बंधव बात कही तिसह जी, नारी नउ परिहार ॥ सो. ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ( ३०१ ) www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy