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॥ धन्ना शालिभद्र सझाय ॥
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सोभागी शालिभद्र भोगी रह्यो । करणी || बत्तीस लक्षण गुण भरचो जी, परण्यउ बत्तीस नार । मानव नइ भव देवना जी, सुख विलसह संसार || सो. गोभद्र सेठ तिहां पूरवइ जी, नित नित नवला रे भोग । करइ सुभद्रा उवारणा जी, सेव करइ बहु लोग ॥ सो. इक दिन श्रेणिक राजियउ जी जोवा श्राव्यउ रूप । देखी अंग सुकोमला जी, हर्ष थयउ बहु भूप ॥ सो. ॥४॥ वच्छ वैरागी चिन्तवह जी, मुझ सिर श्रेणिक राय । पूर पुण्य महं नवि कर या जी, तप आदरस्युं माय ॥ सो. ॥५॥ इ अवसर श्री जिनवरू जी, आव्या नगर उद्यान । शालिभद्र मन ऊजभ्यउ जी, वांद या वीर जी ने ताम ॥ सो. ॥६॥ वीर तणी वाणी सुखी जी. बृठो मेह अकाल । एकाकी दिन परिहरड़ जी, जिम जल छंडइ पाल ॥ सो. ॥७॥ माता देखी टलवलइ जी, माछलड़ी विनंं नीर । नारी सगली पाय पड़ी जी, मत छंडो साहस धीर ॥ सो. ॥८॥ बहुर सगली वीनवइ जी, सांभलि जिणसुं विचार । सर छंडी पाल चढ्यउ जी, हंसलउ उडण हार ॥ सो. ॥६॥ अवसर तिहां न्हावतां जी, धन्ना सिर आंसू पड़त ।
कउण दुख तुझ सांभर चउ जी, ऊंचउ जोइ नह कहंत ॥ सो. ॥१० चंद्रमुखी मृग लोचनी जी, बोलावी भरतार | बंधव बात कही तिसह जी, नारी नउ परिहार ॥ सो. ॥११॥
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