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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
जइ नइ संदेसउ कहिज्यो माहरउ रे,
तुम्हे हियडइ हुइज्यो साहस धीर रे॥१॥ सी०॥ मत तुम्हे जाणउ अम्हनइ वीसरचा रे,
तुम्हे छउ माहरा हीयडला मांहि रे। तुम्ह नइ संभारू सास तणी परि रे,
तुम्ह नइ मिलवा तणउ मन उच्छाहि रे॥२॥ सी०॥ जे जेहनइ मन मांहि वस्या रे,
ते तउ दरि थकां पणि पास रे। किहां कुमुदिनी किहां चंद्रमा रे,
पणि दरि थी करइ परकास रे ॥३॥ सो०॥ सीता नइ संदेसउ हनुमंत जइ काउ रे,
वलतुं सीता पणि मोकल्युं सहिनाण रे । समयसुन्दर कहा राम जी रे,
जयत पाम्यं सीता शील प्रमाणि रे॥४॥ सी०। इति श्री राम सीता गीतम् ।। २५॥
॥ धन्ना शालिभद्र सझाय ॥ प्रथम गोवाल तणइ भवे जी, मुनिवर दीधुं रे दान । नगर राजगृह अवतर या जी, रूपे मयण समान ॥१॥
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