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॥ धना शालिभद्र सझाय ॥
(३०३ )
मुनिवर विहरी चालिया जी, आव्या श्री जिन पास । मुनि संसय जइ पूछयउ जी, माय न दीधुं दान ॥ सो. ॥२३॥ वीर कहइ ऋषि सांभलउ जी, गोरस वहेर चउ रे जेह । मारग मिली महियारड़ी जी, पूर्व जनम नी माय तेह ॥ सो. ॥२४॥ पूरब भव जिन मुख लही जी, एकच भावइ रे दोय ।
आहार करी मन धारियउ जी, अणसण योग ते होय॥ सो. ॥२५॥ जिन आदेश लें। करी जो, चढिया मुनि गिरि वैभार। शिल उपरी जइ करी जी, दोय मुनि अणसण लीधउ सार ।सो. २६॥ माता भद्रा संचरचा जी, साथइ बहु परिवार । अंतेउर पुत्र ज तणउ जी, लीधउ सगलउ साथ ॥ सो.॥२७॥ समोसरण आवी करी जी, वांद या वीर जग तात । सकल साधु वांदी करी जी, पुत्र नइ जोवइ निज मात ॥ सो. ॥२८॥ जोह सगली परषदा जी, नवि दीठा दोय अणगार । कर जोडी नइ वीनवइ जी, तब भाखड़ श्री जिनराज ॥ सो. ॥२६॥ वैभार गिरि जइ चडचा जी, मुनिवर दर्शन उमंग।। सहु परिवारइ परिवरी जी, पहुँती गिरिवर शृंग ॥ सो. ॥३०॥ दोय मुनि अणसण उच्चरइ जी, झीलइ ध्यान मझार। मुनि देखी विलखी जी, नयणे नीर अपार ॥ सो. ॥३१॥ गद गद शब्द जो बोलतां जी, मिली छइ वत्तीसेनार। पिउड़ा बोलउ बोलड़ा जी, जिम सुख पामें अपार ।। सो. ॥३२॥ अमे तो अवगुण भर चा जी, तुम छउ गुण ना भंडार। मुनिवर ध्यान चूक्या नहीं जी,तेह नह विलंब न लगार॥ सो. ॥३३॥
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