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( २६८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि बहुली संपद हूँती छांडि नइ रे,
कहो . किम कीजइ वीर । स्त्री धन रे, भोला भोगवी रे . . पछइ व्रत लेज्यो तुमे धीर ॥धा० ॥३॥ मुझ नइ आशा रे, पुत्र हुंती घणी रे
रमाडिस बहुअर तणा बाल । देव अवटारउ रे, देखी नवि सकइ रे;
...... . ऊपायउ जंजाल ॥धा०।४। मेघकुमरइ रे, माता प्रति बूझवी रे;
दीक्षा लीधी वीर नइ पास । समयसुंदर कहइ धन्य ते मुनिवरू रे;
छूटे छूटे भव तणा पास ॥धा०॥
श्री रामचंद्र गीतम
: राग-मारुणी प्रियु मोरा तई आदरयउ वइराग,
प्रियु मोरा कोटि शिला काउसग रह्यउ हो। प्रियु मोरा कहइ सीता वचन सराग,
प्रियु मोरा देवलोक थी आवी करी हो ॥१॥ प्रियु मोरा तंह कीधी वे पास,
प्रियु मोरा धीज कीधा पछी अति घणी हो।
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