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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सोवनकार घर आंगणइ जी, मुनिवर पहुंतउ जाम । आहार भणी ते मांहि गयउ जी, क्रौंच गल्या जव ताम। मे. ॥२॥ सोवनकार कोपइ चढ्यउ जी, यह मुनिवर नइ दोष । नाना विध उपसर्ग करइ जी, ऋषि मनि नाणइ रोष ॥मे. ॥३॥ वाध्र सँ मस्तक बीटीयउ जी, निविड बंधने भड़ भीड़। घटकि अांख त्रूटी पड़ी जी, प्रबल प्रकट थई पीड़ ।।मे. ॥४॥ क्रौंच जीव करुणा भणी जी, उपशम धर यउ शुभ ध्यान। अनित्य भावना भावतां जी, पाम्यउ केवल ज्ञान ॥मे ॥५॥ अंतगड़ पाली आउखउ जी, पाम्यउ भव नउ पार । अजरामर पदवी लही जी, सासता सुक्ख अपार । मे. ॥६॥ श्री मेतारज मुनिवरू जी, साध गुणे अभिराम । समयसुन्दर कहह माहरो जी, त्रिकरण सुद्ध प्रणाम ॥ मे. ॥७॥ इति मेतार्य ऋषि गीतम् , पं० जयमुदर लि० श्राविका माता पठ.
___ श्री मृगापुत्र गीतम् सुग्रीव नगर सोहामणुं रे, बलभद्र राजा बाप । मिरगां माता जनमियउ रे, मगापुत्र सुप्रताप ॥१॥ कुंयर कहइ कर जोडिं नह रे, हूँ हिव दीक्षा लेस ॥मा. ॥.॥ गउख उपरि बइठइ थकह रे, एक दीठउ अणगार । जाती समरण जाणियु रे, ए संसार असार ॥ मा. ॥२॥
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