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श्री भवदत्त नागिला गीत
( २६१ )
चंद बदनी मृग लोयणी रे,
विल विलती मुकी नारि रे॥। अ०॥ भवदेव भागइ चित आवियउ,
विण अोलख्यां पूछइ वात रे। कहउ कोई जाणइ नारि नागिला रे,
किहां वसइ केही छइ धात रे॥६॥०॥ नारि कहइ सुणि साध जी,
वम्यउ न लेयइ कोई आहार रे । गज चढी खर कोई नवि चडइ,
तिम व्रत छोड़ी नइ नारि रे ॥७॥ अ०॥ नागिला नारि प्रति बूझव्यउ,
वयराग धरयउ मुनिराय रे । भवदेव देवलोक पामियउ,
समयसुंदर वांदइ पाय रे ॥८॥०॥ इति भदेव गीतम् संपूर्णम् ।। २८ ।।
श्री मेतार्य ऋषि गीतम् नगर राजगृह मांहि वसउ जी, मुनिवर उग्र विहार । ऊंच नीच कुल गोचरी जी, सुमति गुपति पण सार ॥११॥ मेतारज मुनिवर बलिहारी हूँ तोरइ नामि । उत्तम करणी तई करी जी, त्रिकरण करू रे प्रणाम ।मे.प्रकरणी।
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