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(२) श्री बाहूबलि गीतम् (२८६ ) (२) श्री बाहुबलि गौतम
राग-कालहरउ राज तणा अति लोभिया, भरत बाहुबलि जूझ रे। मुंठि उपाड़ी मारिवा, बाहुबलि प्रतिबूझइ रे ॥१॥ बांधव गज थी उतरउ, ब्राह्मी सुन्दरी भासह रे। रिषभदेव ते मोकली, बाहूचलि नइ पासइ रे ॥रावा.श्रांकणी।। [वीरा म्हारा गज थकी ऊतरउ, गज चढ्यां केवल न होइ रे वी.] लोचकरी संजम लीयउ, आयउ वलि अभिमानो रे। लघु बांधव वांदू नहीं, काउसग्ग रह्यउ शुभध्यानो रे ॥३॥बां.॥ वरस सीम कारसग राउ, वेलडिए वीटाणउ रे। पंखी माला मांडिया, सीत तावड़ सोखाणउ रे ॥४॥बां.॥ साधवी वचन सुणीकरी, चमक्यउ चित्त विचारइरे। हयगय रथ सविपरिहर या,पणि चड यउ हूँ अहंकारोरे॥४॥बां.॥ वय रागइ मन वालियर, मूंकचउ निज अभिमानोरे। पग उपाड यइ वांदिवा, पाम्यउ केवल न्यानो रे ॥६॥बां.॥ पहुता केवलि परषदा, बाहूबलि रिषिराया रे। अजरामर पदवी लही, समयसुन्दर वांदइ पाया रे ॥७॥बां.॥
इति भरत वाहूबलि गीतम् ॥ २७ ॥
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