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________________ २८८) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि क्षण इक अंतर पूछियउ सर्वार्थ सिद्ध बागी देव की दुंदुभी ए पाम्यउ केवल प्रसन्न चंद्र मुगते गयो श्री महावीर नउ समयसुंदर कहइ धन्य ते जिस दीठा श्री बाहुबलि गीतम् तखिसिला नगरी रिषभ समोसरया रे, सांझ समझ वन वनपालक दीधी वद्धामणी वदूँ वा रिषभजी रिद्धि विस्तार सुं रे, मांहि । रे, बाहुबलि अधिक उच्छाहि ॥ १ ॥ ग्रह उगमतइ बाहुबलि रयणी इम चितवs रे, सूर । अति घणउ आणंद पूर ॥ २ ॥ वां० ॥ पवन तणी परि प्रतिबंध को नहीं रे, आदि जिन विचरचा अनेथि । बाहुबलि अव्यउ श्राडंवर करी रे, समयसुन्दर कहइ तीरथ तिहां थयुं रे, बोबा अदिम Jain Educationa International विमान । ज्ञान || प्र ॥ ५॥ शिष्य । प्रत्यक्ष || प्र. ॥६॥ नय‍ न देखइ केथि ॥ ३ ॥ वां० ॥ मणिमय पीठ मनोहर कर्यु रे, तात भगति अभिराम । नाम ॥ ४ ॥ वां० ॥ इति श्री बाहुबलि गीतं ॥ २६ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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