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________________ ( २८६ ) समयसुन्दरकृतिधुसुमाञ्जलि एहवा मुनिवर वांदियइ जी, चरण कमल चित्त लाय । समयसुंदर गरुइ' भणइ जी, निरुपम शिव सुख थाय ॥६॥ ज०॥ इति धन्ना अणगार गीतं संपूर्ण । श्री प्रसन्न चंद्र राजर्षि गीतम् ढाल-तपोधन रूड़ा रे, भमरा ना गीतनी । मारग मई मुझनइ मिल्यउ रिषि रूड़उ रे, सूधउ साधु निग्रंथ रिषीसर रूड़उ रे। उत्कृष्टी रहणी रहइ रिषि रूड़उ रे, ___ साधतउ मुगति नउ पंथ रिपीसर रूड़उ रे ॥१॥ एकइ पग ऊभउ रह्यउ रिषि रूड़उ रे, सरिज सामी दृष्टि रिपीसर रूड़उ रे। बोलायउ बोलइ नहीं रिषि रूड़उ रे, __ ध्यान धरइ परमेष्टि रिषीसर रूड़उ रे ॥२॥ कहइ श्रेणिक सामी कहउ रिषि रूड़उ रे, जउ मरइ तउ जाइ केथि रिषीसर रूड़उ रे । सामी कहइ जाइ सातभी रिषि रूड़उ रे, तीव्र वेदना छइ तेथि रिषीसर रूड़उ रे ॥३॥ देव की वागी दुदुभि रिषि रूड़उ रे, उप केवल ज्ञान रिषीसर रूड़उ रे । १ भगति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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