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समयसुन्दरकृतिधुसुमाञ्जलि
एहवा मुनिवर वांदियइ जी, चरण कमल चित्त लाय । समयसुंदर गरुइ' भणइ जी, निरुपम शिव सुख थाय ॥६॥ ज०॥
इति धन्ना अणगार गीतं संपूर्ण ।
श्री प्रसन्न चंद्र राजर्षि गीतम्
ढाल-तपोधन रूड़ा रे, भमरा ना गीतनी । मारग मई मुझनइ मिल्यउ रिषि रूड़उ रे,
सूधउ साधु निग्रंथ रिषीसर रूड़उ रे। उत्कृष्टी रहणी रहइ रिषि रूड़उ रे,
___ साधतउ मुगति नउ पंथ रिपीसर रूड़उ रे ॥१॥ एकइ पग ऊभउ रह्यउ रिषि रूड़उ रे,
सरिज सामी दृष्टि रिपीसर रूड़उ रे। बोलायउ बोलइ नहीं रिषि रूड़उ रे,
__ ध्यान धरइ परमेष्टि रिषीसर रूड़उ रे ॥२॥ कहइ श्रेणिक सामी कहउ रिषि रूड़उ रे,
जउ मरइ तउ जाइ केथि रिषीसर रूड़उ रे । सामी कहइ जाइ सातभी रिषि रूड़उ रे,
तीव्र वेदना छइ तेथि रिषीसर रूड़उ रे ॥३॥ देव की वागी दुदुभि रिषि रूड़उ रे,
उप केवल ज्ञान रिषीसर रूड़उ रे । १ भगति
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