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( २७८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
श्री ढंढण ऋषि गीतम् ढाल-धन धन अयवंती सुकुमाल नइ-ए गीतनी. नगरी अनोपम द्वारिका, लांबी जोयण बारो जी। देव नीमी अति दीपति, सरगपुरी अवतारो जी।१। धन धन श्री ढंढण रिषि, नेमि प्रशंस्यउ जेहो जी। अलाभ परिसउ जिण सह्यउ, दुरवल कीधी देहोजी।२।। राज करइ तिहां राजियउ, नवमउ श्री वासुदेवो जी। बत्तीस सहस अंतेउरी, सुख भोगवइ नित मेवो जी। ३ । ध.। ढंढणा राणी जनमियउ, नामइ ढंढण कुमारो जी। राजलीला सुख भोगवइ, देवकुंयर अवतारो जी । ४ । ध.। नेमि जिणिंद समोसरया,वांदिवो गयउ वासुदेवो जी। ढंढण कुमर साथिं गयउ, सहु वांदी करइ सेवो जी । ५ । ध.। घइ नेमीसर देसणा, ए संसार असारो जी। जनम मरण वेदन जरा, दुखु तणउ भंडारो जी"।६। थ.। ढंढण कुमर हलूक्रमउ, प्रतिबूधउ ततकालो जी। नेमि समीपि संजमलीयउ,जिन ओज्ञा प्रतिपालोजी । ७। ध.। नगरी मांहि विहरण गयउ, पणि न मिल्यउ आहारो जी। बेकर जोड़ी वीनवइ, कहउ सामी कुण प्रकारो जी। ८।ध.।
नकुटुम्ब सहु को कारिमु, एक छइ धरम आधारो जी (पाठां०).
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