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श्री जम्बू स्वामी गीतम्
(२७७)
आठ अंतेउर परिहरि रे, कनक निवाणु कोड़। संयम मारग आदस्यउ रे, माया बंधन छोड़ ॥ जी.॥३॥ मात पिता कन्या मिली रे, प्रभवो आप जगीस । दीक्षा लीधी सामठी रे, पांच सउ अठावीस ॥ जी.॥१०॥ जंबू सामि नी जोडली रे, को नइ इण संसार । ब्रह्मचारी चूड़ामणि रे, नाम तणइ बलिहार ।। जी.॥११॥ जंबू केवल पामियउ रे, पाम्यउ अविचल ठाम । समयसुन्दर कहइ हूँ सदारे, नित नित करुय प्रणाम ॥जी.।१२॥
श्री जम्ब स्वामी गीतम
जाऊं बलिहारी जंबू स्वामिनी रे, जिण तजी कनक नी कोड़ि रे।
आठ अंतेउरी परिहरी रे, चरण नमु कर जोड़ि रे । जा. १। यौवन भर जिण जाणियउ रे, एह संसार असार रे।। संयम रमणी आदरी रे, मुनिवर बाल ब्रह्मचारि रे । जा.।२। जिण प्रभवो प्रतिबूझियउ रे, पांचसई चोर परिवार रे। केवल ज्ञान पामी करी रे, पहुंतइ भव तणउ पार रे । जा.३। जंबू सौभागी जोयउ तुम्हे रे, मुगति नारी वर यउ जोय रे। मन गमतउ वर पामियउ रे,अवर न वांछइ बीजउ कोय रे।जा.।४। धारिणी माता कुयरू रे, सुधरम स्वामि नो सीस रे। समयसुन्दर कहइ साधुना रे, हुं नाम जपूनिशदीस रे। जा. १५॥
- इति श्री जंबू स्वामी गीतम् ॥ ३५॥
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