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________________ श्री उदयन राजर्षि गीतम् (२६३ ) जउ इहां आवि समोसरह रे*,सफल करू अवतारो रेशमो.। एह मनोरथ जाणिनइ रे, जगगुरु करइ विहारो रे । चंपा नयरी थी चल्या रे, उदायन उपगारो रे । ६।मो.। वीतभय नगरि समोसो रे, मृगवन नाम उद्यानोरे। समवसरण देवइ रच्यु रे, बइठा श्री ब्रधमानो रे । ७।मो.। राजा वांदण आवियउ रे, हय गय रथ परिवारो रे। पंचाभिगम साचवी रे, धरम सुणइ सुविचारो रे मो.। प्रतिबृधउ प्रभु देसणा रे,जाण्यउ अथिर संसारो रे । बे कर जोड़ी वीनवइ रे, भवसायर थी तारउ रे । मो०। देई राज अभीचि नइ रे, संजम सुद्ध घरेसो रे। प्रभु कहइ देवाणुप्पिया रे, मा पडिबंध करसो रे ।१.मो दूहाः वीर वांदि घर आवियउ, वलि करइ एह विचार । इट्ठ कंत पिय माहरइ, अंगज अभीचि कुमार ॥११॥ राज काज मइलां धणुं, मत ए नरकड जाय । पाटि भाणेजउ थापियउ, केसी नाम कहाय ॥१२॥ कुमर अभीचि रीसाइ करि, पहुतउ कोणिक पास । सुरनर पदवी भोगवी, लहिस्यइ शिवपुर वास ॥१३॥ * पाय कमल सेवा कर रे ( पाठान्तर लींवडी प्रति ) रिण माहे रिखि मातरइ रे, भूख तृषा पीडाणारे। काल करी सुगति गया रे, विवहार मारग जाणो रे ॥७॥ [लीबड़ी वाली प्रति में अधिक ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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