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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
ढाल-मधुकरनी आडंबर मोटइ करी, राजा लीधी दीख, मुनिवर । श्री वीर सई हथि दीखियउ, सूधी पालइ सीख मुनिवर ॥१४॥ चरम राज ऋषि चिर जयउ,नाम उदायन राय, मुनिवर । गिरुयां ना गुण गावतां, पातक दूरि पुलाय, मुनिवर ॥१५॥ तप करि काया सोखवी, लीधा अरस आहार, मुनिवर । रोग सरीरइ ऊपनउ, साधजी न करइ सार, मुनिवर ॥१६॥
औषध वैद्य वतावियउ,दधि लेज्यउ रिषि राय, मुनिवर। वीतभय पाटणि आविया,गोचरि गोयलि जाय, मुनिवर ॥१७॥ राज लेवा रिषि आवियउ, पिशुन उपाड़ी बात, मुनिवर। केसी विष दिवरावियउ, कीधउ साध नउ घात,मुनिवर ॥१८॥ साधु परीसउ ते सह्यउ, अाव्यउ उत्तम ध्यान, मुनिवर । कीधी मास संलेखना, पाम्यउ केवल न्यान, मुनिवर ॥१६॥ मुगति पहुँता मुनिवरु, भगवती अंग विचार, मुनिवर । समयसुंदर कहइ प्रणमता, पामीजइ भवपार, मुनिवर ॥२०॥
॥ इति श्री उदयन राजर्षि गीतम् ॥२८।।
श्री खंदक शिष्य गीतम्
ढाल-अरध मंडित नारी नागिला, एहनी. खंदक सूरि समोसरचा रे,
पांच सइ मुनि परिवार रे।
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