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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
धरती बलि ऊठी घणु रे हां, मारग मांहि बईठ मेरे अरहना । गउखिचड़ी किण विरहणी रे हों,नारी नयणे. दोठ मेरे अरहना।२। बोलावी ऊंचउंलीयउ रे हां, प्राण्यउ निज आवासि मेरे अरहना। हाव भाव विभ्रम करी रे हां,पदमनी पाइचउ पासि मेरे अरहना।। मूक्यड़ ओघउ मुंहपती रे हां, भोगवइ भोग सदीव मेरे अरहना। करम थी को छूटइ नहीं रेहां, काम तणइ वसि जीव मेरे अरहना।।। गउख ऊपरि बइठइ थकह रे हां, दीठी अपणी मात मेरे अरहना। गलियां मांहि ग़हिली भमइ रे हां, पूछह अरहन बात मेरे अरहना।। विहरण वेलाटलि गयी रे हां, आवउ म्हारा अरहन पूत मेरे अरहना। चारित थी चित चुकीयउ रे हां, मोहनी मांहे खूत मेरे अरहना।६। मई माता दुखिणी करी रे हां, धिग धिग मुझ अवतार मेरे अरहना। नारि तजी रिषि नीसरय रे हां,आयउ गुरु पासि अपार मेरे अर.७/ माता पणि आवी मिली रे हां, आणंद अंगि न माय मेरे अरहना। पाप आलोया आपणा रे हां, पणि चरित न पलाय मेरे अरहना।। ताती सिला अणसण लियउ रेहां, चडते मन परिणाम मेरे अरहना। समयसुंदर कहइ माहरउ रे हां,त्रिकरण सुद्धप्रणाम मेरे अरहना ।।।
इति अरहनक गीतम् ॥ ४५ ॥
श्री अरहन्ना साधु गीतम् विहरण वेला रिषि पांगुरयो, तड़. तड़तइ तावड़ि सांचरचा । सेरो, माहि भमतउ पांतर चउ, भूख तरस लागी तात सांभर चल।१।।
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