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________________ श्री जयवंती सुकुमार गीतम् - ((282) मुनिवर अनाथी गावतां, करम नी शूटर कोडि।। गणि समयसुंदर तेहना पाय, बांदर रे मे कर ' जोडि । भे. ६ । श्री अयवंती सुकुमाल गीतम् + ई , नयरि उज्जयिनी मांहि वसर, परिषल जेहनउ भाथो जी । भद्रा सुत सुख भोगवइ, बतीस अंतेउर साथो जी ॥१॥ धन धनवंती सुकुमाल नह, न चाम्पु जेहतु ध्यानो जी। एक रात्रे पामियउ नलिनि गुल्म विमानों जी | २राध | सद्गुरु आवी समोसरचा, समिति नलगि अझवलो जी । जाति समरण पामियउ, संजम परम रथबो जी |३|ष. १ गुरु पूछी रे वन मांहि गयउ, काउसम्म रहाउ समसानोरे जी । स्यालणी सरीर विलूरियड, वेदना सही असमानो जी |४|५. । ततखिण सुर पद पामियड, एहवा अयवंती सुकुमालो जी । समयसुन्दर कहह वंदना, ते मुनिवर नह त्रिकाली जी शिष भी अरहनक मुनि गीतम्: दास-काची कली अनार की रे हां सूचदारा रे लोभाय मेरे ढोलणा । ए गीवनी. बिहरण वेला पांगुर चड़ हां, धूप तपर असराल, मेरे अरहनाः। भूख त्रिखा पीचर णुं हां, मुनिवर व्यति सुकुमाल मेरे रहना | १ | माता करह रे विलाप, भद्रो करइ रे विसार 1 मे. ॥ मरुवी ॥" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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