SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जनि ढाल ३-चउवीसमउ जिणराय रंगे पणमियएक साते उपधान विधिसुं जे वहइ,ते सूधी किरिया करइ ए। खिण न करइ परमाद जीव जतन करइ,पजी पूजी पगला भरइए।१३। न करइ क्रोध कषाय हडसइ नहीं,मरम केहनउ नवि कहइए । नाणइ घर नउ मोह, उत्कृष्टी करइ,साधु तणी रहणी रहइए ।१४। पहर सीम सझाय करिय पोरसी भणी,उंबइ सरि बोलइ नहीं। मन माहे भावई एम,धन २ ए दिन,नर भव मांहि सफल सहीए।१५। जे साते उपधान, विधी सेती वहइ,पहिरइ माल सोहामणी ए। तेहनी किरिया सुद्ध,बहु फल दायक,करम निर्जरा अति घणीए ।१६। परभवि पामइ रिद्धि,देवतणा सुख,छत्रीस बुद्ध नाटक पड़इ ए। लाभइ लोल विलास अनुक्रमि सिव सुख,चढती पदवो ते चड़इए।१७ इम वीर जिनवर भुवन दिणयर, मात तिसला नंदणो, उपधान ना फल कहइ उत्तम, भविय जण आणंदणो । जिणचंद जुगपरधान सदगुरु, सकलचंद मुणीसरो, तसु सीस पाचक समयसुंदर, भणइ वंछित सुख करो ॥१८॥ इति सप्तोपधानविचारगर्भितश्रीमहावीरदेवस्यवृहत्स्तवनं संपूर्णम् कृतं श्री माहिम नगरे शुभं भवतु ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy