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श्री अइमत्ता ऋषि गीतम्
( २४७ )
साधु-गीतानि श्री अइमत्ता ऋषि गौतम
राग-कानरउ बेड़ली मेरी री, तरइ नीर विचाल अइमचउ रमइ बाल । बे० । मुनि बांधी माटी पाल । जल थंभ्यउ ततकाल, काचली मूकी विचाल, रिषी रामति याल ।१।। साधु करइ निंदा हीला, अइमत्ता पड्या हइ ढीला । प्रभुतुभ सीख देयउ व्रत नोकड पाल । महावीर कहइ सामी; अइमनउ मुगति गामी, समयसुन्दइ करइ वंदना त्रिकाल ।२।।
श्री अइमत्ता मुनि गीतम् श्री पोलास पुराधिप विजई, विजय नरिंद प्रचण्ड रे। श्री इण नामइ तसु पटराणी, निरमल नौर अखण्डी रे।। धन धन मुनिवर लघु वह तप लीणउ, अइमत्तउ सुकुमाल रे। तेहना गुण ना पार न सहियइ, वंदउ चरण विसाल रे।।ध०। तासु उयरि सर सीह समोपम, अइमनउ सुकलीणउ रे ।
यह गीत श्री मो० द. देसाई संग्रहस्थित प्रति पत्र ४६) से अपूर्ण मिला है।
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