SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ढाल २ उपधान तप स्तवनम् ( २४५ ) हे पोस पढम पखि दसमी निसि जिए जायउ, एहनी. न उकार त उ तप पहिलउ वीसड़ जाणि, इरियावही नउ तप बीजउ वीस आणि । इण बिहुं उपधाने निलय नांदि मंडारा, बारे उपवासे गुरु मुखी बेबे वाणि || ८ || पांत्रीसड़ त्रीजउ गमुत्थूणं उपधान, त्रि एह वायण उगणीस तप उपधान | प्रधान अरिहंत चेइत चउथउ कटु एह, उपवास अढाई वाणि एक गुण गेह ॥ ६ ॥ पांचमउ लोगस वय अट्ठावीस नाम, साढा पनरह उपवास वायण त्रिण ठाम । पुक्खर वरदी तप छट्ठउ छकड़ सार, साठा त्रि उपवास वाण एक सुविचार ||१०|| सिद्धाणं बुद्धाणं सातमउ उपधान माल, " उपवास करइ एक चउविहार ततकाल । एक वाणी कर वलि गुरु मुखि सरल रसाल, गच्छ नायक पासइ पहिरइ माल विसाल || ११ | माल पहिरण अवसर आणी मन उछरंग, घर सारू खरच धन बहु भंगि । राती जगह आप ताजा तुरत तंबोल, Jain Educationa International गीत गान गवावर पावर अति रंग रोल ||१२|| For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy