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( २४४)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जाल
माल पहिरयां मुझ किरिया सूझड़,
चतुर हुयह ते प्रतिबूझह ।म्हारा ।। समयसुन्दर कहइ उपधान वहियइ,
मुगति तणा मुख लहियइ । म्हारा ।।।
उपधान तप स्तवनम्
ढाल-एक पुरुष सामल सुकलीणउ, एहनी. श्री महावीर धरम पर कासइ, बइठी परखद बारजी । अमृत वचन सुनइ अति मीठा, पामइ हरख अपार जी ॥१॥ सुणो सुणो रे श्रावक उपधान वूहां, बिन किम सूझइ नवकारजी। उत्तराध्ययन बहुश्रुत अध्ययन, एह भण्यउ अधिकार जी ।२। सु.। महानिशीथ सिद्धांत मांहे पणि, उपधान तय विस्तार जी। अनुक्रमि सुद्ध परंपरा दीसइ, सुविहित गच्छ आचार जी।३। सु.। तप उपधान वहां विण किरिया, तुच्छ अल्प फल जाण जो। जे उपधान वहइ नर नारी, तेहनउ जनम प्रमाण जी।४।सु.। सूत्र सिद्धांत तणा तप उपधान, जोग न मानइ जेह जी। अरिहंत देव नी आण विराधइ, भमस्यइ बहु भव तेह जी।। सु.। अघड्या घाट समा नर नारी, विण उपधानह होइ जी। किरिया करतां श्रादेस निरदेस, काम सरइ नहीं कोइ जी।६। सु.। एक घेवर वलि खांड सु भरियउ,अति घणउ मीठउ थाय जो ७। सु.। एक श्रावक नइ उपधान वहइ तउ, धन धन ते कहिवाय जी।। सु.।
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