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श्री ज्ञान पंचमी बृहत्स्तवनम् (२३७ ) ढाल २--- काजहरा नी, बे बांधव बंदण चल्या, एहनी पांचमि तप विधि सांभलउ, पामउ जिम भव पारो रे। श्री अरिहंत इम उपदिसइ, भवियण नइ हित कारो रे । पा.१० मगशिर माह फागुण भला, जेठ आसाढ़ वइसाखो रे । इण पट मासे लीजियइ, सुभ दिन सद गुरु साखो रे । पा.११॥ देव जुहारी देहरइ, गीतारथ गुरु वांदी रे। पोथी पूजइ न्यान नी, सकति हुबइ तउ नांदी रे। पा.१२॥ बे कर जोड़ी भाव सु, गुरु मुखि करइ उपवासो रे। पांचमि पड़िकमणु करइ, पढइ पंडित गुरु पासो रे । पा.१३॥ जिणि दिन पांचमि तप करइ,तिण दिन प्रारंभ टालइ रे। पांचमि तवन थुइ कहइ, ब्रह्मचरिज पणि पालइ रे । पां.।१४। पांच मास लघु पंचमी, जाव जीव उत्कृष्टी रे।। पांच वरस पांच मास नी, पांचमी करइ सुभ दृष्टी रे। पां.१५॥
ढाल ३----पाय पणमी रे जिणवर नइ सुपसाउलइ, एहनी हिव भवियण रे पांचमि उजमणउ सुणउ,
. घर सारू रे वारु धन खरचउ घणउ । ए अवसर रे आता वली दोहिलउ,
पुण्य योगइ रे धन पामंता सोहिलउ । सोहिलउ धन वलि पामतां, पणि धरम काज किहां क्ली । पंचमी दिन गुरु पासि अवि, कीजियइ कारसग रली॥
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