________________
(२३८)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
-
त्रिण ज्ञान दरसण चरण टीकी, देई पुस्तक पूजियइ । थापना. पहिली पूजि केसर, सुगुरु सेवा कीजियइ ॥१६॥ सिद्धांत नी रे पांच परति वीटांगणा,
पाँच पूठा रे मुखमल सूत्र प्रमुख तणा। पांच दोरा रे लेखणि पांच मसीजणा,
वास कँपी रे कांबी वारू वरतणा।। वरतणा वारू बलिय कमली, पांच झलमलि अति भली। थापनाचारिज पांच ठवणी, मुंहपती पुड़ पाटली ॥ पट सूत्र पाटी पांच कोथलि, पांच नउकरवालि ए। इण परि श्रावक करइ पांचमि, उजमणुं उजुयालिए ॥१७॥ वलि देहरइ रे स्नात्र महोछव कीजियइ,
वित सारू रे दान वलि तिहाँ दीजियइ । प्रतिमा नह रे आगलि ढोणउ ढोइयइ,
पूजा नां रे जे जे उपग्रण जोइयइ ।। जोइयह उपग्रण देव पूजा, काजि कलस भिंगार ए। .
आरती मंगल थाल दीवउ, धूप धाणउ सार ए ॥ घनसार केसर अगर सूकड़ि, अंगलूहण दीस ए। पांच पांच सगली वस्तु ढोवइ, सगति सहु पंचवीस ए ॥१८॥ पांचमिता रे साहमी सवि जीमाड़ियइ,
राती जागइ रे गीत रसाल गवाड़ियइ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org