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________________ ( २२२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि जिणिंद गुण गनि मन मोयु, जि. समयसुन्दर प्रभुध्याने मन मोयु।म० । सामान्य जिन विज्ञप्ति गीतम् राग-केदारउ जगगुरु तारि परम दयाल । जन्म मरण जरादि दुख जल, भव समुद्र भयाल ।११ ज०। हां हुँ दीन अत्राण अशरण, तूं हि त्रिभुवन भुवाल । स्वामि तेरइ शरणि पायउ, कपा नयण निहालि ।२।बा०। कपानाथ अनाथ पीहर, भव भ्रमण भय टालि । समयसुन्दर कहति सेवक, सरणागत प्रतिपालि ३॥ ज० । श्री सामान्य जिन आंगी गीतम् राग-मारुणी नीकी प्रभु आंगी वणी जो, तांता हो हीयइ हरख न माय। मणि मोतिण हीरे जड़ी, तेजइ हो आंगी झगमगि थाय ।। नी.। बांहि अलिक बहिरखा, काने काने दोय कुण्डल सार । मस्तकि मुगट रयण जड़यउ, हीयडइ हो मोतिण को हार।रानी.। ससि दल भाल तिलक मलउ, नयणे हो नीके कनक कचोल । प्रभु मुख पूनिम चंद्रमा दीपइ, दीपइ हो दरपण कपोल ।३। नी.। मोहन मूरति निरखतां, भागे भागे हो दुख दोहग दूर। समयसुन्दर भगति भणइ, प्रगटे हो मेरे पुण्य पडूर ।४।नी.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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