________________
पश्चपरमेष्ठिगीतम्
( २२१ )
समयसुदर कहइ जोज्यो विचारी रे,
प्रतिमा पूजा छइ सुखकारी रे ॥ प्र० ६॥ श्री पंच परमेष्ठि गीतम्
राग-परभाती जपउ पंच परमेट्टि परभाति जापं,
हरइ दुरि शोक संताप पापं ॥ १ ज० ॥ अठसट्टि अक्षर गुरु सप्तमानं, ... सुख संपदा अष्ट नव पद निधानं ॥२ ज० ॥ महामंत्र ए चउद पूरब निधारं,
भण्यउ भगवती सूत्र धुरि तच सारं ।। ३ ज०॥ जपइ लाख नवकार जे एक चित्रं,
___ लहइ ते तीर्थंकर पद पवितं ॥ ४ ज० ॥ कहुँ ए नवकार केतु वखाण, __गमइ पाप संताप पांच सार प्रमाणं (१)।। ५ ज०॥ सदा समरतां संपजइ सर्व कामं,
भणइ समयसुंदर भगवंत नामं ॥ ६ ज० ॥ ___ श्री सामान्य जिन गीतम
__राग-गुड मल्हार हरखिला सुरनर किन्नर सुन्दर, ... माइ रूप पेखि जिनजी कउ ।११चालि०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org