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श्री महावीर देवषत् कल्याणकगर्भित स्तवनम् ( २१५ ) जिणवर काती मास, वदिहि अमावसी; सिव रमणी रंगड़ वरी ए ।
गयरांगण सुरसार, वज्ञ्जिय दुन्दुभी; महियलि महिमा विस्तरी ए ॥ २१ ॥
ते नर नारी धन्न, नाम जपइ नित; सामि तथा वलि गुण कहड़ ए । पाम परमाणंद, नव निधि नह सिधि; मन बंछित फल ते लहड़ ए ॥ २२ ॥
॥ कलश ॥
इय षट् कल्याणक नाम आणी वर्द्धमान जिणेसरो । संधु सामी सिद्धि गामी, पवर गुण रयणायरो ॥ जिचंद पय अरविंद सुन्दर, सार सेवा महुयरो | गणि सकलचंद सुसीस जंप, समयसुन्दर सुहकरो ॥२३॥
इति श्री महावीर देवपटू कल्याणक गर्भित बृहत्स्तवनम् । -0):0:(•—
श्रीवीतरागस्तव - छन्दजातिमयम्
श्रीसर्वज्ञ जिनं स्तोष्ये, छंदसां जातिभिः स्फुटम् यतो जिव्हा पवित्रा स्यात्, सुकोकोपि भवेद्भुवि ॥ १ ॥
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