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( २१४ )
समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
aisa नी प्रभु अनुमति लेई, दान दयाल संत्रच्छर देई; हे सयल सनेह | मगसिर बदि दसमी दिन सामि, चरण रमणि मनि रंगड़ पामि; चांमीकर सम देह ||१६||
॥ ढाल ॥
तिहाँ थी करिय विहार, पड़िवोही अहि चंड कोसिय जिणवरू ए । सामि सहइ उवसग्ग, निय सगतिं थकी धरणीधर धीरिम धरू ए ॥ १७॥ शुभ जोगड़ वयसाख, सुदि दशमी दिनह
मोह तिमिर भ नासतउ ए । पाम्यउ केवल नाण भाग समोपमः
लोयालोय प्रकाशतउ ए ॥ १८ ॥ समवशरण सुरकोड़ि, रच अनोपमाः सामी वइसइ तसु परी ए । सुर नर तिरिय समक्खि, धड़ जिरण देसण; सयल लोय संसय हरी ए ॥ १६ ॥ संचार सुरसार, सरसिज सुन्दर; पाय कमल तलि प्रभु तराइ ए । "सुरवर नी इग कोड़ि, जघन्य तराइ लेखर; सेव करइ हरख घण्उ ए ॥ २० ॥
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