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श्री महावीरदेवषट्कल्याणकगर्भितस्तवनम् ( २१३ )
स्नान करावी विधि नव नवी,
जणणी नइ पासइ प्रभु ठवी । सवि सुर जायइ. निय नियठामी,
हरख घणउ हियड़ई मांहि पामि ॥११॥ . धण कण कंचण करि अतिघणु,
घर वाधइ सिद्धारथ तणु । तिण कारण जिणवर नु नाम,
वर्द्धमान प्राप्यु अभिराम ॥१२॥ पालणडइ पउढइ जिणराय,
हीडोलइ हरसइ निय माय । गावइ गीत सुरलियामणा, __जिणवर ना लीजइ भामणा ॥१३॥ पगि गूघरड़ी घमका करइ,
ठमि ठमि प्रांगणि पगला भरइ । रूपइ जगत्र तणा मण हरइ, पेखंतां पातिक परिहरइ ॥१४॥
॥ ढाल ॥ जोवन वय जब जिणवर आयउ, नारि जसोदा तब परणायउ;
गायउ गुणह उदार । रूप अनोपम जिणवर सोहइ, भवियण लोक तणा मण मोहइ;
ओ हइ जगि आधार ॥१॥
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