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( २१२ )
सपयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
॥ ढाल ॥
अवहि नाणि जाणी जिण जम्म, १ ततखिण करिवा निय निय कम्म । आवई सुरपति मनि गह गही,
सुर नर लोकां अंतर नहीं ॥ ६ ॥ द्यइ अोसोवणि त्रिसला पासि,
जिण पडिबिंब ठवी उलासि । . लेई जायई सुर गिर नइ ,गि, ____ पांडु कंबला नइ उच्छंगि ॥ ७ ॥ आणी नव नव तीरथ तोय,
कनक कँभ भरइ सवि कोय । तिम वलि दूध तणा श्रृंगार,
स्नान भणी सुर झालइ सार ॥ ८ ॥ कनक कुंभ सुर ढालइ जस्यइ,
हरि संसय ऊपन्नउ तस्यइ । अति लहुड़उ ए जिणवर वीर,
किम सहस्यइ कलसा ना नीर ॥ ६ ॥ प्रभु हरि संसय भंजन भणी,
पग अंगुली चांपई निज तणी । थरहर कांप भूधर राय,
महावीर तिहां नाम कहाय ॥ १० ॥
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