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________________ HIN श्री महावीरदेव षट् कल्याणक गर्भित स्तवनम् ( २११ ) श्री महावीर देव षट् कल्याणक गर्भित स्तवनम परम रमणीय गुण रयण गण सायरं, चरण चिंतामणी धरण जण सायरं । सयल संसयहरं सामियं सायरं, ___चरम तीथंकरं थुणिसु हुँ सायरं ॥ १ ॥ दसम सुरलोय थी चविय परमेसरी, मास आसाढ़ सिय छठि गुण सुन्दरो । अवतरचउ उसमदत्तस्स रमणी तणइ, उयरि वरि सरुवरे हंस जिम सवि सुणइ ॥ २ ॥ तत्थ समयंमि सुरराय “आसण चलइ __अवहि नाणेण तसु सव्य संसय टलइ । निरखए भरह खेतंमि तीथंकरो, : अवतरयउ अज्ज माहण कुले जिणवरो ॥ ३ ॥ तयणु सुरराय आएस बसि लसी, ___ संहरइ गम्भ हरिणेगमेसी वसी । . मास आसू कसिण तेरसी निसभरे, अवतरचउ मात त्रिसला तणइ उरवरे ॥ ४ ॥ चैत्र सुदी तेरसी जिणवर जाइउ, राय सिद्धत्थ पाणंद मनि पाइयो । छपन दिस कुंयरी मिलि आवि नृप मंदिरे, . स्नान मजन करइ स्वामि ने बहुपरे ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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