________________
( २०० )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
श्री पार्श्वजिन (प्रतिमा स्थापन) स्तवन श्री जिन प्रतिमा हो जिन सारखी कही, ए दीठां आणंद । समकित बिगड़इ हो संका कीजता, जिम अमृत विष बिंद । श्री.१॥
आज नहीं कोई तीर्थकर इहां, नहीं कोई अतिशय वंत । जिन प्रतिमा हो एक आधार छइ, आपै मुगति एकांत । श्री.२॥ सूत्र सिद्धान्त हो तर्क व्याकरण भण्या, पण्डित कहइ पण लोक। जिन प्रतिमा नइ हो जे मानइ नहीं,तेहनउ सगलो ही फोक । श्री.३। जिन प्रतिमा हो आगइ णमुत्थुणं कहइ, पूजा सतर प्रकार । फल पिण बोल्या हो हित सुख मोक्षना,द्रोपदी नइ अधिकार ।श्री.४। रायपसेणी हो ज्ञाता भगवती, जीवाभिगम नइ मांझ। ए सूत्र मानइ हो प्रतिमा मानै नहीं, महारी मां नइ बांझाश्री.॥ साधुनइ बोल्या हो भावस्तव भला, श्रावक नइ द्रव्य भाव । ए बिहुकरणी हो करतां निस्तरइ, जिन प्रतिमा सुप्रभाव । श्री.६। पार्श्वनाथ हो तुझ प्रसाद थी, सदहणा मुझ एह । भव भव होजो हो समयसुन्दर कहइ, जिन प्रतिमा सुनेह । श्री.७।
श्री पाश्वजिन दृष्टान्तमय लघु स्तवन हरख धरि हियडइ मांहि अति घणउ,
___ तुह पसाय लही तुह गुण भणु। जलधि पारइ प्रवहण उतरइ,
तिहां समीरण सहि सानिध करइ ॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org